OP INDIA REPORT – वैज्ञानिकों ने सबूत के साथ साबित किया सरस्वती नदी का अस्तित्व: वैदिक ऋचाओं पर रिसर्च की मुहर
२५०० ईसापूर्व पहले तक मिले सरस्वती नदी के बहाव के सबूत !
हडप्पा सभ्यता के सबसे अच्छे दिनों में भारत और पाकिस्तान के एक बडे क्षेत्र को सरस्वती नदी ही सींचा करती थी। ये नदी हिमालय की ऊँची चोटियों पर स्थित ग्लेशियर से उतर कर उत्तरी-पश्चिमी भारत के हिस्सों में पहुँचती थी !
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सरस्वती नदी का अनेकों-अनेक बार उल्लेख आता है ! वेद-पुराणों पर विश्वास न करनेवाले लोग अक्सर सरस्वती नदी के अस्तित्व पर सवाल उठाते रहते हैं। अब वैज्ञानिक व विश्लेषकोंद्वारा तैयार किए गए एक नए रिसर्च पेपर में खुलासा हुआ है कि, सरस्वती नदी का न केवल अस्तित्व था, बल्कि, प्राचीन काल में यह लोगों के लिए जीवनदायिनी नदी के समान थी ! ये रिसर्च रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि, सरस्वती को पहले घग्गर नदी के नाम से जाना जाता था। यह हडप्पा सभ्यता के दिनों में जो बसावट थी, उसके बीचोंबीच बहती थी।
ये नदी हिमालय की ऊँची चोटियों पर स्थित ग्लेशियर से उतर कर उत्तरी-पश्चिमी भारत के हिस्सों में पहुँचती थी। हडप्पा सभ्यता के सबसे अच्छे दिनों में भारत और पाकिस्तान के एक बडे क्षेत्र को सरस्वती नदी ही सींचा करती थी। पहले कहा जाता था कि, घग्गर बरसाती नदी थी और हडप्पा के लोग बाकी दिनों में वर्षा पर आश्रित रहते थे। नदी की तलहटी के ३०० किलोमीटर के क्षेत्र में लगातार हुए कई परिवर्तनों का अध्ययन करने के बाद यह पता चला है कि, सरस्वती नदी के साल भर बहने के भी ‘स्पष्ट सबूत’ हैं !
वैज्ञानिकों ने पूरी समयावधि को दो भागों में बाँटा है। एक ७८,००० ईसापूर्व से लेकर १८,००० ईसापूर्व तक और एक ७००० ईसापूर्व से लेकर २५०० ईसापूर्व तक ! इन दोनों ही अवधियों में सरस्वती नदी निरंतर बिना किसी रुकावट के बहा करती थी। इसके साथ ही ऋग्वेद की कई ऋचाओं पर भी मुहर लग गई, जिनमें सरस्वती नदी के बारे में बताया गया है। दूसरी अवधि के समाप्त होते ही हडप्पा संस्कृति अपने अंतिम चरण में भी पहुँच गई थी और सरस्वती नदी के अंत के साथ ही वो लोग उपजाऊ भूमि की खोज में कहीं और निकल गए !
इस रिपोर्ट को अनिर्बान चटर्जी, ज्योतिरंजन रे, अनिल शुक्ला और कंचन पांडेय ने तैयार किया है। इसके लिए पहले हुए अध्ययनों के साथ-साथ कई आधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया गया। चटर्जी, रे और शुक्ला- ये तीनों ही अहमदाबाद के नवरंगपुरा स्थित फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी में कार्यरत हैं। कंचन पंडित आईआईटी बॉम्बे में ‘डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेज’ विभाग में कार्यरत हैं। अनिर्बान कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में ‘डिपार्टमेंट ऑफ जियोलॉजी’ में भी सेवाएँ दे रहे हैं। इन चारों ने वैज्ञानिक आधार पर साबित किया है कि, सरस्वती नदी एक मिथ नहीं है।



Source – OP INDIA REPORT